आप माने या न मानें,यह हमारे लिए सबसे बड़ी आफत
वर्तमान में विद्यमान व प्रचलित बुफे की दावत है│इसमें एक दिन हमें भी एक बारात में जाना पड़ा│सभी के सभी बाहर शो पीस की तरह खड़े थे│मगर क्या करें,भाई
साहब सभी के सभी भूखे थे,जैसे ही खाने का सन्देश आया मैंने भी जाकर नंबर लगाया│हाल में भगदड़ सी मच गयी.पांडाल में एक के ऊपर एक बरसने लगे,जिसने झपट लिया पा गया,बाकी
के खड़े तरसने लगे│मैंने देखा तत्पर थे दस,देखकर
सोच लिया अब खा लिया बस │ एक व्यक्ति हाथ में प्लेट लिए
इधर से उधर चक्कर लगा रहा था,खाना लेना तो दूर उसे देख भी नहीं पा रहा था│दूसरा अपनी प्लेट में चावल की तश्तरी झाड लाया था उससे कही ज्यादा कपडा फाड़ लाया था│तीसरी एक महिला थी जो ताड़ के वृक्ष की तरह तानी थी,उसकी आधी साडी पनीर में सनी सनी
थी│चौथा बेचारा गवांर था,कपडे
उतारकर पहले से ही तैयार था│पाचवा अकेले ही सारे झटके झेल
रहा था,भीड़ में अटके एक आदमी से खेल रहा था│छठा कल्पना में ही खाना खा रहा
था,दूसरे की थाली देख खुद अपना मुख चला रहा था│सांतवे का ईश्वर ही मालिक था,प्लेट उसके हाथ में परन्तु खली था│आँठवा इन हरकतों से परेशां था,क्योंकि बीवी बच्चो से अधिक प्लेट पर ध्यान था│नवां अजीब हरकते कर रहा था,खाना खाने की बजाय अपनी जेब में भर रहा था│दसवां स्वयं लड़की वाला था साथ में मुख खोले स्वयं उसका साला था.घराती वाले तो सारे
खाने पर अड़े थे,बेचारे बाराती बुरा हाल देख बिस्तर पर ही पड़े थे│