गुरुकुल
में अपनी शिक्षा पूरी करके एक शिष्य अपने गुरु से विदा लेने आया। गुरु ने
कहा- वत्स, यहां रहकर तुमने शास्त्रों का समुचित ज्ञान प्राप्त कर लिया,
किंतु कुछ उपयोगी शिक्षा शेष रह गई है। इसके लिए तुम मेरे साथ चलो।
शिष्य
गुरु के साथ चल पड़ा। गुरु उसे गुरुकुल से दूर एक खेत के पास ले गए। वहां
एक किसान खेतों को पानी दे रहा था। गुरु और शिष्य उसे गौर से देखते रहे। पर
किसान ने एक बार भी उनकी ओर आंख उठाकर नहीं देखा। जैसे उसे इस बात का
अहसास ही न हुआ हो कि पास में कोई खड़ा भी है।
वहां
से आगे बढ़ते हुए उन्होंने देखा कि एक लुहार भट्ठी में कोयला डाले उसमें
लोहे को गर्म कर रहा था। लोहा लाल होता जा रहा था। लुहार अपने काम में इस
कदर मगन था कि उसने गुरु-शिष्य की ओर जरा भी ध्यान नहीं दिया।
गुरु
ने शिष्य को चलने का इशारा किया। फिर दोनों आगे बढ़े। आगे थोड़ी दूर पर एक
व्यक्ति जूता बना रहा था। चमड़े को काटने, छीलने और सिलने में उसके हाथ
काफी सफाई के साथ चल रहे थे। गुरु ने शिष्य को वापस चलने को कहा।
शिष्य
समझ नहीं सका कि आखिर गुरु का इरादा क्या है? रास्ते में चलते हुए गुरु ने
शिष्य से कहा- वत्स, मेरे पास रहकर तुमने शास्त्रों का अध्ययन किया लेकिन
व्यावहारिक ज्ञान की शिक्षा बाकी थी। तुमने इन तीनों को देखा। ये अपने काम
में संलग्न थे। अपने काम में ऐसी ही तल्लीनता आवश्यक है, तभी व्यक्ति को सफलता मिलेगी।
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